ऊपर आका नीचे काका”, इतनी बड़ी संज्ञा, भारतीय सिने जगत के इतिहास में शायद ही किसी कलाकार को मिली हो।जी हां, हम बात कर रहे हैं, भारतीय सिने जगत के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की। राजेश खन्ना का वास्तविक नाम जतिन अरोरा था। उन्हें परिवार के क़रीबी रिश्तेदार खन्ना दम्पत्ति ने गोद लिया था।स्कूल में जतिन के सहपाठी रहे रवि कपूर, सुप्रसिद्ध अभिनेता जीतेन्द्र के नाम से जाने जाते हैं।
जतिन को अभिनय का शौक़ स्कूली दिनों से ही था जो वक़्त के साथ बढ़कर जुनून में बदल गया। जतिन को राजेश नाम उनके चाचा ने दिया तो जीतेन्द्र और उनकी धर्मपत्नी शोभा ने राजेश को काका कहना शुरु किया। राजेश खन्ना ने ही पहले आॅडिशन में जीतेन्द्र को कैमरे के सामने संवाद अदायगी सिखाई।
बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, ख़ूबसूरत राजेश के लिये फिल्मी सफ़र की शुरुआत आसान रही और २३ वर्ष की उम्र में अपनी पहली ही फ़िल्म आख़री ख़त से उन्होंने फ़िल्मी दुनियां में पहचान बना ली।
आशा पारेख के साथ आई फ़िल्म राज़ भी बेहद सफल रही। लेकिन सफलता का रेकाॅर्ड तोड़ दौर तो अभी आना बाक़ी था। और ये दौर शुरु हुआ, १९६९ में आई फ़िल्म आराधना से। राजेश खन्ना की दोहरी भूमिका वाली शक्ति सामन्त की इस फ़िल्म में क्या नहीं था! शानदार अभिनय, सुमधुर गीत-संगीत, सधी हुई पटकथा, बेहतरीन निर्देशन, अद्भुद फिल्मांकन, सबकुछ था
इस फ़िल्म में। आराधना ने सफलता के वो झण्डे गाढ़े जो सिने जगत का अविस्मरणीय इतिहास बन गए और साथ ही राजेश खन्ना और किशोर कुमार एक-दूसरे के पर्याय ही बन गए। पर्दे पर गाने का अभिनय करते राजेश खन्ना और पर्दे के पीछे वास्तविक जादुई आवाज़ बिखेरते किशोर कुमार की जुगलबन्दी ने गीत-संगीत का ऐसा समां बांधा, जो युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा।
यहीं से राजेश खन्ना के फ़िल्मी सफ़र के स्वर्णिम दौर की शुरुआत हुई। १९६९-१९७२ के बीच आईं आराधना, इत्तेफ़ाक, दो रास्ते, बंधन, डोली, सफ़र, ख़ामोशी, कटी पतंग, आन मिलो सजना, द ट्रेन, आनन्द, सच्चा झूठा, दुश्मन, मेहबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, मर्यादा समेत लगातार २० सुपर डुपर हिट फ़िल्मों से फ़िल्मी दुनियां में राजेश खन्ना के नाम का ज़बरदस्त डंका बजने लगा |
आज लोगों को शायद यक़ीन न हो, लेकिन ये बात १०० फ़ीसदी सत्य है कि भिख़ारियों ने तक “राजेश खन्ना के नाम पर दे दे” की याचना करते हुए भीख़ मांगना शुरु कर दिया था, इसीलिये ये कहावत बनी *ऊपर आका, नीचे काका*
१९७२-७५ के बीच आईं फ़िल्में अमर प्रेम, दिल दौलत दुनियां, जोरु का ग़ुलाम, शहज़ादा, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, अपना देश, अनुराग, दाग़, नमकहराम, आविष्कार, अजनबी, प्रेम नगर, रोटी, आपकी क़सम, प्रेम कहानी भी बेहद सफल रहीं और राजेश खन्ना का नाम तो जैसे सफलता की गारंटी ही बन गया था, उनके घर पर निर्माताओं की कतारें लगने लगी थी
लाफ़कीया पागलपन की हद तक राजेश खन्ना की दीवानी थीं। मन मोहक मुख मण्डल, क़ातिलाना मुस्कान, पलकें मूंदने जैसी अदाओं से लड़कियां जैसे सम्मोहित ही हो जाया करती थीं। यहां तक कि उनकी सफ़ेद मर्सिडीज़ को भी, होठों की सुर्ख़ लाली से, पूरी तरह ढंक दिया जाता था।
१९७१, १९७२ और १९७५ में उन्हें क्रमशः सच्चा झूठा, आनन्द और आविष्कार के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के बतौर उन्हें फ़िल्म फ़ेयर (पुरस्कार) सम्मान से सम्मानित किया गया।१८ जुलाई २०१२ को, फ़िल्मी दुनियां के इस पहले सुपर स्टार ने दुनियां से विदाई ली।
उनकी अविस्मरणीय स्मृति में, मुम्बई स्थित उनके घर के सामने, बैण्ड स्टैण्ड-बान्द्रा पर उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है।
भारतीय सिने जगत को अभूतपूर्व योगदान देने वाले स्वर्गीय श्री राजेश खन्ना को उनके जन्मदिवस २९ दिसम्बर पर विनम्र श्रद्धांजलि?